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________________ ६-सम्यक्त्वपराक्रम (३) भोजन-सामग्री खाने में लग गये और वह नदी के परले पार चली गई । अपने जार के पास पहुच कर और मनोरथ पूर्ण करके वापस लौटी । छिपे वेष मे राजा भोज ने यह सब घटना देखी । राजा सोचने लगा - मैं तो यह घटना जान गया हू मगर इस प्रकार की घटन एं घटती हैं, यह ब त लोग जानते हैं या नहीं, यह भी मालूम करना चाहिए । इस प्रकार विचार कर उसने अपने पडितो की सभा मे कहा-- दिवा काकस्य भयात् अर्थात्-'दिन के समय काक से डरती है ।' इतना कहकर उसने पडितो से कहा-- अब आप लोग कहिए कि इससे आगे क्या होना चाहिए ? दूसरे पडित तो चुप रहे, मगर कालीदास ने कहा ___ रात्रि तरति निर्मलजलं । अर्थात --' वही रात्रि के समय जल मे तैरती है।' यह सुनकर राजा ने कालीदास से कहा __ तत्र वसन्ति ग्राहादयो अर्थात - 'जल मे तो ग्राह आदि जतु रहते हैं । इसके उत्तर मे कालीदास ने कहा मर्म जानन्ति सासनीन्द्रिका ? अर्थात-जो दिन मे कौवो से डरती है और रात्रि मे नदी पार कर जाती है, वह स्त्री ग्राह-मगर आदि जतुओ से बचने का उपाय भी जानती है ।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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