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________________ अट्ठाईसधा बोल-६७ आत्मा जगत् को विपरीतता दूर करने के लिए संसार में जन्म धारण करता है । इस मान्यता का निषेध करने के लिए ही शास्त्रकारो ने 'सिद्ध' और 'बुद्ध' शब्दों के साथ "मुक्त' शब्द का प्रयोग करके स्पष्ट कर दिया है कि सिद्ध हुए आत्मा को ससार में अवतार या जन्म नही लेना पडता 1 इस कथन पर यह आशका हो सकती है कि इसी प्रकार जीव सिद्ध होते रहेगे तो एक दिन ऐसा भी पा सकता है, जब इस संसार में एक भी जीव बाकी नही रहेगा। कुछ लोगो को यह भय लगा है कि ससार कही जीवो से एकदम खाली न, हो जाये । इस कारण वे कहते हैं कि जीवात्मा थोडे समय तक सिद्धिस्थ न मे रह कर फिर ससार से लौट आता है । मगर यह कल्पना मिथ्या है और भ्रम उत्पन्न करने वाली है । तुम लोग भी शायद यी सोचते होगे कि जीव अगर इसी तरह मुक्त होते रहे और वापस न आये तो कभी न कभी सारा संसार जीवों से शून्य हो जायेगा । परन्तु इस बात पर यदि गहरे उतर कर बुद्धिपूर्वक विचार करोगे तो तुम्हे यह लगे विना नही रहेगा कि यह कल्पना खोटी और भ्रामक है । जिन महात्माओ ने सिद्धि प्राप्त की है और सिद्धि को स्वरूप देखा है-जाना है, उन महात्माओ ने काल को भी देखा और जाना है, उसके बाद ही उन्होने अपना निर्णय घोषित किया है कि संसार कभी जीवरहित हो हो नहीं सकता । ज्ञानी महात्माओं के इस कथन पर तुम स्वय भी गहरा विचार करोगे तो इस कथन को समझे बिना नहीं रह सकते और तुम्हारा सारा सदेह मिट जाएगा।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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