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________________ २०६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) अर्थात् विचार करने से क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न से यह स्पष्ट हो जाता है कि काल का विचार करना आवश्यक है । काल का प्रतिलेखन न करने से बहुत अनर्थ होते है । काल कैसा है और कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस बात का विचार न करने से अत्यन्त हानि होती है । काल के विरुद्ध व्यवहार करने के कारण हानि होना स्वाभाविक है। कितने ही लोग ऐसे हैं जो किसी काम के विगड जाने पर सारा दोष काल के मत्थे मढ देते हैं। मगर यह उनकी भूल है। उसमे काल के विरुद्ध कार्य करने वाले का दोष है, काल का नही । काल खराब हो तो उसका सुधार भी किया जा सकता है। काल का सुधार अगर सभव न होता तो शास्त्र मे उसका उपक्रम और उसके द्रव्य, क्षेत्र काल, और भाव, यह चार भेद न बतलाये गये होते । काल का भी उपक्रम होता है, फिर भले ही वह परिकर्म अर्थात् सुधार के रूप मे हो या वस्तुविनाश के रूप मे हो । यद्यपि काल का प्रभाव अवश्य पडता है किन्तु उद्योग करने से काल में सुधार किया जा सकता है । इस काल मे कौन-सा कार्य करना चाहिए और कौन-सा कार्य नही करना चाहिए, यह विचार करना आवश्यक है। काल को दृष्टि मे रखकर रहन-सहन और खानपान मे भी परिवर्तन करना आवश्यक हो जाता है। काल को दृष्टि के सन्मुख रखकर उचित परिवर्तन न करने से अनेक प्रकार की हानियाँ होती है । काल तो अपनी प्रकृति के अनुसार काम करता ही जाता है, मगर काल का विचार न रखने वाला और अकाल कार्य करने वाला अवश्य दुखी होता है । यह बात ध्यान में रखते हुए भगवान् से यह
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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