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________________ १२-सम्यक्त्वपराक्रम (२) कवि कहता है तुम्हारे समक्ष बाब में इस प्रकार आगे चलकर घोर दण्ड सहन करना पडेगा । उस समय 'कितना दुख भुगतना पडेगा? अतएव घोर दण्ड से बचने के लिए अपने पाप यही प्रकट करके आलोचना कर लेना चाहिए। कवि कहता है- 'प्रभो। मुझ मे बालक के समान सरलता होनी चाहिए और तुम्हारे समक्ष कोई भी वात प्रकट करने में मुझे सकोच नही होना चाहिए।' कवि ने इस प्रकार कहकर निष्कपट-सरल बनने का, अपना आन्तरिक भाव व्यक्त किया है। लोगो के लिए सरलता सरल और कपट कठिन है । मगर उन्होने इससे विपरीत मान लिया है । बस समझते हैं-सरलता रवना कठिन है और कपट करना सरल है । इस झूठी मान्यता के कारण ही लोग ससार के चक्र में घूम रहे हैं। __ कुछ लोग कहते है कि आजकल कोई महाज्ञानी महापुरुष नहीं हैं, इस दशा में हमारा निस्तार कैसे हो सकता है ? इसका समाधान यह है कि तुम्हारे भीतर शक्ति होने पर ही महाज्ञानी तुम्हारा निस्तार कर सकते है । तो फिर तुम यह क्यो नही देखते कि तुममे शक्ति है या नहीं ? तुम्हारी पात्मा सरल है या कपटयुक्त है, यह बात पहले देखना चाहिए। अगर तुम्हारे अन्तर में सरलता होगी तो तुम अपना कल्याण आप ही कर लोगे । अगर अात्मा कपटयुक्त हुआ तो फिर कोई भी तुम्हारा कल्याण नहीं कर सकता । क्योकि सरलता के विना आत्मकल्याण होना असभव है । कपट तो कल्याण के द्वार मे प्रवेश करने के वज्रमय कपाट के समान है ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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