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________________ १३८-सम्यक्त्वपराक्रम (२) में डाल रहा है, इस बात को समझने के लिए यह देखना चाहिए कि हीरा की कान्ति बडी है या आख की ज्योति वडी है ? न मालम कितने क्षायोपशमभाव से आत्मा को आखे मिली है । परन्तु इस तरह महा कष्ट से प्राप्त आग्वे आत्मा को किस प्रकार उदयभाव में डाल देती है, इसके लिए रावण और मणिरथ के उदाहरण तुम्हारे सामने है। रावण ओर मणिरथ की आखो ने ही उन्हे भ्रम मे डाला था । यह तो बडे आदमियो के उदाहरण हैं । छोटो की तो कोई गिनती ही नही है । इन उदाहरणो को सामने रखकर हम विचार कर सकते हैं कि रावण और मणिरथ की भांति ही अनेक लोग आख के कारण भ्रम में पड़ जाते होगे ! अतएव इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि आँखो को ऐसी जगह दृष्टिपात ही न करने दिया जाये, जो उदय भाव की हो। क्षायोपशमिकभाव से प्राप्त नेत्र अगर औदयिकभाव मे जाते है तो इसके लिए किसे उपालम्भ दिया जा सकता है ? आखो की बदौलत पतग दीपक पर पड कर भस्म हो जाता है । पतग को इतना जान नही है, इस कारण वह दीपक से प्रेम करता है, मगर तुम तो ज्ञानवान् हो । पतग' को नेत्र मिले है, मगर वह नहीं जानता कि नेत्रों का उपयोग किस प्रकार करना चाहिए । मगर तुम्हारे नेत्रो के पीछे तो महान शक्ति विद्यमान है, जो बतला सकती है कि नेत्रो का उपयोग किस प्रकार किया जाये ? पतग चार इन्द्रियो वाला प्राणी है, मगर तुम्हारे पाचो इन्द्रियां हैं। पचेन्द्रियो मे भी तुम सजी पचेन्द्रिय हो । सजी पचेन्द्रियाँ मे मनुष्य-जन्म, पार्यक्षेत्र और थावककुल मे तुम्हे जन्म
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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