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________________ ग्यारहवाँ बोल प्रतिक्रमण गुरु को विधिपूर्वक वन्दना करने के लिए हृदय के भाव शुद्ध रखने चाहिए मगर कभी-कभी शुद्ध भाव हृदय से निकल जाते है और अशुद्ध भाव उनका स्थान ग्रहण कर लेते है। इन अशुद्ध भावो को बाहर निकालने और आत्मा मे पुन शुद्ध भाव लाने के लिए प्रतिक्रमण करने की आव श्यकता बतलाई गई है । अतएव प्रतिक्रमण के सम्बन्ध में ___ भगवान् से प्रश्न किया गया है - प्रश्न-पडिक्कमणेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर- पडिक्कमणेणं वय-छिद्दाई पिहेइ, पिहियवयछिट्टे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरिते असु पवयणमायासु उवउत्ते उपुहत्ते (अप्पमत्ते) सुप्पणिहिए विहरइ ॥१॥ शब्दार्थ प्रश्न- भगवन ! प्रतिक्रमण करने से जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर- प्रतिक्रमण करने से अहिंसा आदि व्रतो के अतिचार (दोष) रुकते है और अतिचारो को रोकने वाला जीव आस्रव को रोकता हुआ तथा निर्मल चारित्र का पालन
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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