SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवां बोल-१०७ उसमे कहा गया है कि भड़क श्रावक को कालोदधि ने पूछा था-" तुम्हारे भगवान् महावीर पचास्तिकाय का प्रतिपादन करते हैं । उनमे से चार को अरूपी और एक पुद्गल को रूपी कहते है। लेकिन अरूपो क्या तुम्हे दिखाई देता है?" मडूक श्रावक ने इस प्रश्न का उत्तर दिया- "हम अरूपी को नही देख सकते " कालोदधि-जिस वस्तु को तुम देख नही सकते, उस पर श्रद्धा करना और उसे मानना कोरा पाखड नही तो क्या है ? __मड़क-हे देवानुप्रिय । तुम्हारे कथन का आशय यह हुआ कि जो वस्तु देखी जा सके उसे ही मानना चाहिए; जो न देखी जा सके उसे नही मानना चाहिए । किन्तु मैं पूछता हूँ कि पवन, गन्ध और शब्द को तुम आखो से देख सकते हो ? समुद्र को एक किनारे पर खडे होकर दूसरा किनारा देख सकते हो ? अगर नही, तो क्या पवन, गन्ध, शव्द और दूसरे किनारे को नही मानना चाहिए ? तुम्हारा पक्ष तो यही है कि जो वस्तु देखी न जा सके उसे मानना ही नही चाहिए । मडूक का यह युक्तिवाद सुनकर कालोदधि प्रभावित हुआ । वह सोचने लगा- भगवान् महावीर के गृहस्थ शिष्य इतने कुशल हैं तो स्वय भगवान् कैसे होगे ? ' मड़क श्रावक जब भगवान् महावीर के पास आया तव भगवान ने उससे कहा --- "हे मडूक ! तूने कालोदधि को ऐसा उत्तर दिया था ?" मडूक वोला- हा भगवन् । मैने यही उत्तर किया
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy