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________________ सातवां बोल-८६ उचित नही है, परन्तु पुत्र का शव यों ही पडे रहने देना और उसका संस्कार न करना भी क्या उचित है?" राजा ने उत्तर दिया- 'जो होनहार होगा, होगा । परन्तु शव के संस्कार के लिए सत्य का घात करना उचित नही । सत्य सबसे श्रेष्ठ है, इसलिए सर्वप्रथम सत्य की ही रक्षा करनी चाहिए।" कतिपय लोग कह देते हैं.-"क्या किया जाये, अमुक ऐसा कारण उपस्थित हो गया कि उस समय सत्य का पालन करना अत्यन्त कठिन था । किसी भी युक्ति से उस समय काम निकालना आवश्यक था ।" इस प्रकार कहकर लोग सत्य की उपेक्षा करते हैं। किन्तु ज्ञानीजनो का कथन है कि सत्य पर विश्वास रखने से तुम्हारे भीतर अलौकिक शक्ति का प्रादुर्भाव होगा और उस दशा में तुम्हारा कोई भी कार्य अटका नही रहेगा । शास्त्र मे कहा ही है देवा वि तं नमंसति जस्स धम्मे सया मणो । सत्य का निरन्तर पालन करने से देवता भी तुम्हारी सेवा मे उपस्थित होंगे। मगर आज तो यह कहा जाता है देव गया द्वारिका, पीर गया मक्का । अगरेजो के राज मे, डेढ मारे धक्का । अर्थात् - आजकल कलियुग चल रहा है । देव भी न जाने कहा विलीन हो गये है! मगर देवो को देखने से पहले अपनी आत्मा को क्यों नही देखते ? तुम्हारे हृदय के भाव देखकर ही देव आ सकते हैं । तुम में धर्म होगा तो देव अपने आप आ जाएंगे। अतएव धर्म को अपनाओ- हृदय मे धर्म को स्थान दो।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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