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________________ सातवां बोल-८७ एक कारगर उपाय गर्दा करना है । सच्ची गर्दी करने से आत्मोन्नति होती ही है, क्योकि गर्दा आत्मोन्नति और आत्मशुद्धि का प्रधान कारण है । सच्ची गर्दा करने वाला पुरुष आत्मा को कभी पतित नही होने देता। चाहे जैसा भयानक सकट आ पडे, फिर भी आत्मा को पतित न होने देना ही सच्ची गर्दी का अवश्यम्भावी फल है । राजा हरिश्चन्द्र का राजपाट वगैरह सब चला गया ।' उसने इन सब चीजो को प्रसन्नतापूर्वक जाने दिया, मगर आत्मा को पतन से बचाने के लिए स-य न जाने दिया। आखिर उस पर इतना भयकर सकट आ पड़ा कि एक ओर मृत पुत्र सामने पडा है और दूसरी ओर उसकी पत्नी दीन वाणी मे कहती है कि पुत्र का सम्कार करना आपका कर्त्तव्य है। यह आपका पुत्र है। आप इसका सस्कार न करेंगे तो कौन करेगा ? पत्नी के इस प्रकार कहने पर भी हरिश्चन्द्र ने यही उत्तर दिया कि मेरे पास इसका सस्कार करने की कोई सामग्री नही है। हरिश्चन्द्र की पत्नी तारा ने कहा- अग्निसस्कार करने के लिए और क्या सामग्री चाहिए ? लक्कड सामने पडे ही हैं। फिर अग्निसस्कार करने मे विलब की क्या आवश्यकता है? हरिश्चन्द्र ने उत्तर दिया - तुम ठीक कहती हो, पर यह लक्कड मेरे नही, स्वामी के है। स्वामो की आज्ञा है कि कर देने वाले को हो लकडिया दी जाए । अतएव यह लकडिया विना मोल नही मिल सकती ।। ___ यह सुन कर तारा बोली- आपका कथन सत्य है। - पर आप एक टके का कर किससे माँग रहे है ? क्या मैं
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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