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________________ अध्ययन का प्रारम्भ-७७ हृदय में स्थापित करो । इस दशा मे भी तुम्हारा कल्याण हो जायेगा। सभी लोग नदी के ऊपर पुल नहीं बँधवा सकते, फिर भी राजा द्वारा बँधवाये हुए पुल पर से जैसे हाथी जा सकता है, उसी प्रकार कीडी भी नदी पार कर सकती है। पुल के अभाव में हाथी को भी नदो पार करना कठिन हो जाता है । अतएव जैसा पराक्रम भगवान् ने किया था, वैसा पराक्रम तुम से न हो सके तो कम से कम उनका नाम तो अपने हृदय मे धारण कर ही सकते हो । सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी से कहा-ऐसे श्रवण भगवान् महावीर ने जब केवलज्ञान प्राप्त कर लिया तब सम्यक्त्वपराक्रम अध्ययन की प्ररूपणा की और मैंने उनसे यह सुना । जनता के कल्याण के लिए इस अध्ययन में भगवान् ने प्रश्न रूप मे एक-एक बात उपस्थित करके स्वय ही उस प्रश्न का उत्तर दिया है । इस प्रकार सब बातो का निर्णय किया है । अगर तुम सचमुच ही अपना कल्याण चाहते हो तो भगवान् की इस वाणी पर विश्वास रखकर इसे अपने जीवन में स्थान दो । भगवान् की वाणी को अपने जीवन मे ताने-बाने की तरह बुन लेने से अवश्य कल्याण होगा । भगवान् की वाणी कल्याणकारिणी है, मगर उसका उपयोग करके कल्याण करना अथवा न करना तुम्हारे हाथ की बात है। इस सम्बन्ध मे भगवान् ने किसी पर किसी प्रकार का दबाव नही डाला है । भगवान् मर्यादा-पुरुषोत्तम थे । वह मर्यादा को भग नही कर सकते थे। उनकी मर्यादा यह थी कि मेरे द्वारा किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचने पावे । ठोक-पीट कर समझाने से सामने वाले को कष्ट पहुँचता है।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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