SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०-सम्यक्त्वपराक्रम (१) अर्थात-धर्मग्रन्थो में अनेक वातो मे मतभेद है किन्तु _ 'अहिंसा श्रेष्ठ धर्म है' इस विषय में किसी का मतभेद नही है । अहिसा को धर्म मानने से कोई इन्कार नही कर सकता। __ अगर कोई व्यक्ति इन्कार करता है तो उसके मान्य धर्म• ग्रन्थो से अहिंसा की श्रेष्ठता सिद्ध की जा सकती है ।। इस प्रकार सभी दया मे विश्वास रखते है और अहिसा को धर्म मानते हैं । किन्तु जिस भारतवर्ष मे दया का इतना प्रचार है उसमे कोई दुखी नही है ? आज दुःखी मनुष्यो की संख्या भारत मे अधिक है या अमेरिका मे ? यद्यपि अमेरिका आदि पाश्चात्य देशो मे सहारक नीति का प्रसार हो रहा है किन्तु अपने और अपने भाइयो के अधिकारो की रक्षा के लिये ही इस नीति का आश्रय लिया जा रहा है। अपने अधिकारो की रक्षा का प्रसग आने पर वहाँ के लोग चपचाप नही बैठे रहते, वरन् लड मरते है और उस समय वे यह नही देखते कि हम किस प्रकार हिंसा पर उतारू हो गये हैं। इतना होने पर भी वे लोग अपने देश के दुखियो की रक्षा करते ही है । तुम लोग' 'दयाधर्म-दयाधर्म' कहते फिरते हो, फिर भी भाई-भाई के बीच कितना द्वेप भरा हआ है, यह तो देखो ! अगर तुम सच्चे दयाधर्मी हो तो तुम्हारा व्यवहार ऐसा नही होगा कि जिससे किसी का जरा भी दिल दुखी हो । , सच्चा दयाधर्मी कैसे वस्त्र धारण करेगा? वह चर्वी वाले वस्त्र पहनेगा अथवा विना चर्वी के ? कदाचित बिना चर्वी के वस्त्र महंगे हो तो भी क्या पैसो के लिये दयाधर्म का त्याग कर देना चाहिये ? बम्बई के विषय मे सुना गया है कि वहाँ तवेला की गायो का मांस चार पाने सेर विकता
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy