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________________ ५६-सम्यक्त्वपराक्रम (१) और तेजोमय होता है । प्रभामडल के कारण उस विशिष्ट पुरुप के मुख पर ऐसा तेज चमकने लगता है, जिससे उसके सामने बोलते भी लोग सहम जाते हैं। विशिष्ट पुरुषो के मुखमडल के आसपास प्रभामडल होने की शोध अधुनिक शोध नहीं है । प्राचीन चित्रो को देखने से ज्ञात होता है कि उस समय चित्रकारो को इसका भलीभाँति ज्ञान था । प्राचीनकाल के राजा-रानी के चित्रो मे भी उनके मुख के आसपास प्रभामडल चित्रित किया हुआ देखा जाता है अर्थात् मुखमडल के आसपास एक तेजपूर्ण गोलाकार प्रदर्शित किया गया है। इससे स्पष्ट है कि प्राचीन चित्रकारो को प्रभामंडल का ख्याल था । जब साधारण राजा-रानी के मुखमडल के साथ भी प्रभामडल चित्रो मे दिखाई देता है तो भगवान् के मुखमडल के साथ प्रभामडल का होना कौनसी आश्चयजनक बात है ? भगवान् के मुखमडल के आसपास जो प्रभामडल होता है वह इतना तेजपूर्ण होता है कि अनेक प्राणी भगवान् का दर्शन करते ही निष्पाप-पाप की भावना से रहित बन जाते है। सातवाँ प्रातिहार्य-जहाँ भगवान् विचरण करते है वहाँ देवता आकाश मे दुन्दुभिनाद करते रहते है दुन्दुभिनाद भगवान् के आगमन को सूचना देता है । इसके सिवाय भगवान की वाणी भो मानो पाप को नष्ट करने के लिए दुन्दुभिनाद ही है। लोग कृत्रिम व्वनि के भुलावे मे पडकर अकृत्रिम ध्वनि को भूल रहे है । कोयल जव कूकती है तो इस बात को परवाह नहीं करती कि कौन उसकी प्रशसा करता है और कोन उसकी निन्दा करता है ! वह तो कूकती ही रहती
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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