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________________ 'अध्ययन का प्रारम्भ-५३ जो मोक्ष में विराजमान है और जिन्हे सिद्ध करते है । दूसरे भगवान् आयुष्यमान् है, जो तेहरवे गुणस्मान मे विराजते हैं और जो अहन्त कहलाते है । 'आयुष्मान् भगवान् से मैने सुना है' ऐसा कहने का प्रयोजन यह है कि यह वाणी कुछ आकाश मे से उतर कर नहीं आई है किन्तु तेरहवे गुणस्थान में विराजमान भगवान् के मुखारविन्द से प्रसूत हुई है । कुछ दाश निक अपने दगन की बात आकाश से उतरी हुई बतलाते है, मगर जैनशास्त्र इस कथन को उचित नही समझता । जैन शास्त्र स्पष्ट शब्दो मे घोषणा करते हैं कि यह वाणी तेरहवे गुणस्यान मे वतमान भगवान् की कही 'आयुष्मान्' शब्द के साथ 'भगवन्' शब्द का प्रयोग किया गया है । भगवान् शब्द का साधारण अर्थ पहले बतलाया जा चुका है। ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, धर्मस्य यशसः श्रियः । वैराग्यस्याथ मोक्षस्य, षण्णा भग इतीङ्गना ॥ अर्थात्-सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, वैराग्य और मोक्ष की 'भग' सज्ञा है । यह जिसमे पाये जाते हो वह 'भगवान्' है। समग्र ऐश्वर्य होना यह पहली बात है । सामान्यतया थोड़ा-बहुत ऐश्वर्य सभी के पास होता है। वैज्ञानिको के कथनानुसार एक रज,कण को भी किचित् ऐश्वर्य प्राप्त है। वैज्ञानिकों का कथन है कि साधारण तौर पर परमाणु की कोई गिनती नही की जाती, पर परमाणु भी सूर्य की सत्ता धारण करता है । इस प्रकार थोडा-बहुत ऐश्वर्य सभो में पाया जाता है, परन्तु ऐसे ऐश्वर्य के कारण कोई भगवान
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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