SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४-सम्यक्त्वपराक्रम (१) पचमकाल आ रहा है और वह अत्यन्त विषम है। पचमकाल में ससारमथन के कारण अनेक प्रकार के विष निकलेगे । ऐसा जानकर उन्होने पचमकाल को किंचित् सरल बनाने के उद्देश्य से सूत्र का यह मार्ग खोल दिया है। किन्तु सूत्र का मार्ग खोलते हुए उन्होने स्पष्ट कह दिया है कि यह मार्ग हमारा बतलाया नही है, वरन् जगत् का कल्याण करने वाले भगवान् महावीर द्वारा प्रदर्शित यह मार्ग है। उन करुणासागर महावीर प्रभु की यह कैसी असीम करुणा है । इस पचमकाल मे यो तो अनेक किवदन्तियाँ प्रचलित होगी, परन्तु जगत् का कल्याण करने वाली बात की निशानी याद रखना कि जो बात भगवान महावीर ने गौतमस्वामो से कही थी, सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी से कही थी, वही बात कल्याणकारिणी है । यह बात स्मरण रखने से तुम कभी किसी के धोखे मे नही आओगे । जैसे राजमार्ग विश्वास के योग्य माना जाता है, उसी प्रकार भगवान् का बतलाया हुआ यह राजमार्ग भी विश्वास के योग्य है । भगवान् का यह राजमार्ग कल्याण का मार्ग है, ऐसा विश्वास रख कर उसी पर चलते चलो तो अवश्य ही तुम्हारा कल्याण होगा। सुधर्मास्वामी ने कहा है 'मैंने भगवान से ऐसा सुना है, तो सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि भगवान् कौन हैं ? और भगवान् का अर्थ क्या है ? भगवान् शब्द 'भग्' धातु से निष्पन्न हुआ है । 'भग' का अर्थ इस प्रकार है . ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, धर्मस्य यशसः श्रियः । वैराग्यस्याथ मोक्षस्य, षण्णां भग इतीङ्गना ।। अर्थात्-जिसमे सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, वैराग्य
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy