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________________ अध्ययन का आरम्भ इस अध्ययन को आरम्भ करते हुए कहा गया है : सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एयमक्खायं , इह खलु सम्मतत्तपरक्कमे नामज्झयणं समणणं भगवया महावीरेणं कासवेण पर्वइयं । यह सूत्रपाठ है। इस सूत्रपाठ मे मगलवचन क्या है, यह देखना चाहिये। साधारण रूप से सूत्र की आदि मे, मध्य मे और अन्त मे मगलाचरण करने का नियम है, परन्तु यह अध्ययन स्वय ही मगल रूप है अर्थात् भगवान् की वाणी ही है । अतएव यहाँ अलग' मगलाचरण करने की आवश्यकता नही है । इस सूत्रपाठ मे सुधर्मास्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते है-'हे आयुष्मन् | मैंने भगवान महावीर से जो सुना है, वह तुझे सुनाता हू ।' सुधर्मास्वामी चार ज्ञान और चौदह पूर्व के धनी थे, फिर भी उन्होने अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहा है कि भगवान् महावीर से मैंने जो सुना है वही सुनाता हूं। जव सुधर्मास्वामी स्वयमेव इतने ज्ञानी थे तो उन्हे ऐसा कहने की क्या आवश्यकता पड़ी ? क्या वह स्वय ऐसा कथन नही कर सकते थे ? या स्वय सूत्र नही रच सकते थे ? वह सूत्र भी रच सकते थे और कह भी सकते थे। फिर भी उन्होने एक लघु व्यक्ति की तरह क्यो कहा कि मैंने भगवान् से जो
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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