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________________ सम्यक्त्वपराक्रम-३३ . दक्षिण में, उरण नामक एक गॉव समुद्र के किनारे बसा है। वहाँ मछली पकड़ने का काम खूब चलता है । वहाँ का एक भाई मुझसे कहता था- 'मैं एक दिन आटा पिसवाने के लिए फ्लोर मिल मे गया । मैंने वहाँ देखा कि मच्छीमा रोकी स्त्रियाँ जिस टोकरी में मछलिया बेचती थी, उसी टोकरी मे अनाज भरकर पिसवाने आई थी। अब विचार करो कि तुम भी उसी चक्की मे आटा पिसवाते हो तो मछलियो की टोकरी मे भरे अनाज के दानो का थोडा बहुत आटा तुम्हारे आटे मे नही आता होगा? तुम और और बातो मे तो सावधान रहते हो, परन्तु ऐसो बातो पर ध्यान नही देते । तुम्हारा कोई स्वधर्मी भाई, जो गरीब होने के कारण कपड़े की फेरी करता है या खेती करता है, वह तुम्हारी ही जाति का हो तो भी उसे साथ जिमाने मे परहेज करते हो, परन्तु फ्लोर-मील मे सेलभेल हुए आटे का उपभोग करने में कोई परहेज नही करते । यह कितना अधेर है। पूज्य श्री श्रीलालजी महाराज के मुखारविद से मैंने सुना है कि बीकानेर मे वैद मुहता हिन्दूसिंहजी दीवान थे। वह स्थानकवासी जैन थे । बीकानेर मे उनकी खूब प्रतिष्ठा थी और राजदरबार मे भी बडी इज्जत थी। एक बार दीवान साहब भोजन करने बैठे ही थे कि एक घी की फेरी करने वाला वणिक् आया । उसने दीवान साहब से कहा'क्या आप घी खरीदेगे ? हिन्दूसिंहजी ने उसे देखकर अनुमान किया कि यह कोई महाजन ही है । इस प्रकार अनुमान करके उसे अपने पास बुलाया और पूछा-'भाई, कहाँ रहते हो ?' घी वेचने वाले ने अपना गाँव बतला दिया ।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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