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________________ सम्यक्त्वपराक्रम-३१ उसमे गुण की अपेक्षा नही रहती और कोई नाम गुणनिष्पन्न भी होता है। इस अध्ययन का अप्रमत्त नाम गुणनिष्पन्न है । पहले के लोग गुणनिष्पन्न नाम रखते थे, आजकल की तरह खोटे नाम नही । कदाचित् तुम खोटा भी नाम रख सकते हो मगर शास्त्र ऐसी भूल किस प्रकार कर सकता है ? अतएव प्रकृत अध्ययन का अप्रमत्त नाम गुणनिष्पन्न ही है। खोटा नाम कैसा होता है और गुणनिष्पन्न नाम में उससे क्या अन्तर होता है, यह बात समझने के लिए एक उदाहरण लीलिए : एक सेठ का नाम ठनठनपाल था । नाम ठनठनपाल होने पर भी वह बहुत धनवान था और उसकी बहुत अच्छी प्रतिष्ठा भी थी। प्राचीनकाल के श्रीमन्त, श्रीमन्त होने पर भी अपना कोई काम छोड़ नहीं बैठते थे । आज जरा-सी लक्ष्मी प्राप्त होते ही लोग सब काम छोडछाड कर बैठे रहते हैं और ऐसा करने मे ही अपनी श्रीमन्ताई समझते हैं। ठनठनपाल सेठ की पत्नी सेठानी होने पर भी पानी भरना, आटा पीसना, कूटना आदि सब घरू काम-काज अपने हाथो करती थी । अपने हाथ से किया हुआ काम जितना अच्छा होता है, उतना अच्छा दूसरे के हाथ से करवाया काम नही होता । परन्तु आजकल बहुत-से लोग धर्मध्यान करने के बहाने हाथ से घर का काम करना छोड़ देते हैं। उन्हे यह विचार नही आता कि धर्मध्यान करने वाला व्यक्ति क्या कभी आलसी बन सकता है ? जो कार्य अपने ही हाथ से भलीभाँति हो सकता है, शास्त्रकार उसके त्याग करने का
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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