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________________ सम्यक्त्वपराकम उत्तराध्यन सूत्र के २६वे अध्ययन का पहला नाम 'सम्यक्त्वपराक्रम' अध्ययन, दूसरा नाम 'अप्रमत्त सूत्र' अध्ययन और तीसरा नाम 'वीतरागसूत्र' अध्ययन है । । इन तीन नामो मे से सध्यम नाम की व्याख्या करने से तीनो नामो की व्याख्या हो जाती है। इसी अभिप्राय से नियुक्तिकार ने 'अप्रमत्त अध्ययन' नाम की ही व्याख्या की है। इस नाम की व्याख्या समझ लेने से विदित होगा कि एक नाम की व्याख्या में ही शेष दो नामो की व्याख्या का समावेश किस प्रकार हो जाता है । ___अप्रमत्त का अर्थ है-प्रमाद को जीतना । इसके भी चार निक्षेप हैं--नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । नाम और स्थापना निक्षेप सुगम हैं। इनका विवेचन न करते हुए शास्त्रकार द्रव्य और भाव निक्षेपो का विवेचन करते हुए कहते है कि द्रव्य अप्रमत्त का बोध तो सभी को होता है। दुश्मन चढाई कर दे और तुम मजे उडाते रहो नो कैसी दशा होगी ? तुम यहाँ बैठे हो । इसी समय कोई 'सॉप प्राया' चिल्लाने लगे तो कितने जहाँ के तहाँ बैठे रहेगे ? इस प्रकार द्रव्य-अप्रमाद को तो सभी जानते है । द्रव्य-भय से मुक्त होने के लिए जो उद्योग किया जाता है वह द्रव्य-अप्रमाद कहलाता है। यह आत्मा द्रव्य-अप्रमत्त अनेको वार हुआ है और होता ही रहता है । दूसरो की बात जाने दीजिये, रेशम
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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