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________________ चौथा बोल-२४७ धर्म के लिए प्राण देने से अधिक प्रसन्नता की और क्या बात हो सकती है ?' बादशाह ने हुक्म दिया -'वेगबह दुर को बाजार के बीचोबीच ले जाओ और वहाँ इसका सिर काट डालो .' मिर काटने के पश्चात् तेगबहादुर के गले मे एक चिट्ठी पाई गई । उसमे लिखा था सिर तो दिया, मगर शिखा नहीं दी । अर्थात प्राणो का उत्सर्ग कर दिया किन्तु हिन्दूधर्म का त्याग नही किया । इस उदाहरण को सामने रखकर आप अपने विषय मे विचार कीजिए कि आपने सत्यधर्म की रक्षा के लिए क्या दिया है ? पहले के लोग धर्मरक्षा के लिए प्राण भी अर्पण कर देते थे, लेकिन धर्म नहीं जाने देते थे । आप में कोई ऐसा तो नही है जो थोडे से पैसो के लिए भी धर्म का त्याग कर देता हो ? जिस मनुष्य मे से नीति चली जाती है, उसमे धर्म भी नही रहता। औरगजेब ने सोचा तो यह था कि तेगवहादुर को मरवा डालने से लोग जल्दी मुसलमान बन जाएंगे, लेकिन उसका विचार भ्रमपूर्ण हो सिद्ध हुआ । तेगवहादर के बलिदान ने लोगो मे एक प्रकार की धार्मिक वीरता उत्पन्न की। लोगो मे धर्म के लिए मर-मिटने की दढता देखकर अन्त में औरगजेब को बलात् मुसलमान बनाने का विचार छोड देना पड़ा। इस उदाहरण को उपस्थित करने का आगय यह है कि धर्म के लिए सभी कुछ त्याग किया जा आजकल अनेक लोग तुच्छ-सो बात के लिए भी धर्म ए मर-मिट आरगजेब को छो
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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