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________________ सूत्रपरिचय-१५ तथा केशी-गौतम के बीच हुए सम्वादों का कथन करने वाले अध्ययन । इन सब अध्ययनो का कथन इस प्रकार करना चाहिए, जिससे बध और मोक्ष का सम्बन्ध प्रकट हो । क्योकि इनमे यही बतलाया गया है कि कर्म किस प्रकार बघते हैं और कर्मबन्धन से मोक्ष किस प्रकार होता है ? पहले बध का ठीक-ठीक स्वरूप समझ लेने पर ही मोक्ष का सच्चा स्वरूप समझा जा सकता है, क्योकि जिसका बध है, उसी को मोक्ष मिलता है। जब तक बध का स्वरूप न समझ लिया जाय तब तक मोक्ष का स्वरूप भी नही समझा जा सकता । कुछ लोगो का कहना है कि मोक्ष स्वय सिद्ध वस्तु है, परन्तु जैनशास्त्र ऐसा नही मानते । मोक्ष को सिद्ध करने वाला बध ही है और कर्मबध से छुटकारा पाना ही मोक्ष है । इस प्रकार बध होने से ही मोक्ष है । यह बात सिद्ध करने के लिए विनीतता और अविनीतता का कारण बतलाया जाता है। विनीतता मोक्ष का कारण है और अविनीतता बध का कारण है । मोक्ष का सामान्य अर्थ है--छूटना । बधनो से छूटनामुक्त होना ही मोक्ष है । अतएव मोक्ष का स्वरूप समझने के लिए सर्वप्रथम बध का स्वरूप समझने की आवश्यकता है। आजकल लोगो में विनय बहुत कम देखा जाता है। आस्तिकता, नम्रता और विनयशीलता की न्यूनता होने से ही कर्मबध होता है, ऐसा शास्त्रकारो का कथन है । यहाँ तो केवल यही बतलाना है कि उत्तराध्ययनसूत्र बध और मोक्ष का स्वरूप प्रतिपादन करता है । इस सूत्र के प्रथम अध्ययन मे विनय का स्वरूप बतलाया गया है और अट्ठाईसवे अध्ययन मे मोक्षमार्ग का निरूपण किया गया है।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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