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________________ २२६-सम्यक्त्वपराक्रम (१) (वेष) से भी सहधर्मी है और धर्म से भी सहधर्मी हैं, किंतु धावक सिर्फ धर्म से सहधर्मी है । कहा जा सकता है कि साधु अनगारधर्म का पालन करते है और श्रावक आगार. धर्म का पालन करते हैं । दोनो का धर्म जुदा-जुदा है ! ऐसी स्थिति में साधु और श्रावक सहधर्मी किस प्रकार कहे जा सकते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर मे यहो कहा जा सकता है कि श्रावको मे अणुव्रत होते हैं और साधु महाव्रतो का पालन करते है । अणुव्रत और महाव्रत परस्पर सबद्ध हैं अर्थात् अणुव्रत के आधार पर ही महाव्रत है और महाव्रत के आधार पर ही अणुव्रत हैं । इस प्रकार एक के साथ दूसरे का सम्बन्ध है । इस सम्बन्ध के कारण ही साधु और श्रावक साधर्मी है । धर्म के पालन के लिए दोनो की आवश्यकता है । अणुव्रत का पालन न किया जाये तो महावतो का पालन करना ही मुश्किल हो जाये । अगर कोई भी पुरुष अणुव्रती न हो तो हमे महाव्रतो का पालन करने में अतीव कठिनता हो। मान लीजिए कि आप सब लोग अगर मिल के ही वस्त्र पहनते हो तो हमें खादी के वस्त्र कहा से मिले ? इस प्रकार हमे महाव्रतो का पालन करने के लिए अणुव्रती श्रावको की सहायता की आवश्यकता रहतो ही है । जैमे नोतिधर्म के होने पर ही लोकोत्तर धर्म का पालन हो सकता है, उसी प्रकार अणुव्रतो का पालन होने पर ही महाव्रतो का भलीभाति पालन किया जा सकता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र में कहा है कि सर्वप्रथम लोकोत्तर धर्म का उच्छेद होगा और सब के अन्त मे लौकिक धर्म का उच्छेद होगा । इस सूत्र-कथन का आशय यही है कि प्रीतिधर्म का पालन न होने पर लोकोत्तर धर्म का भी पालन
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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