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________________ २१६ - सम्यक्त्वपराक्रम ( १ ) वह शारीरिक और मानसिक दुःखों से मुक्त हो जाता है । अनगार शारीरिक और मानसिक दुखो से किस प्रकार मुक्त हो जाता है, इसके लिए गजसुकुमार मुनि का उदाहरण सर्वोत्तम है । गजमुकुमार मुनि शरीर और अवस्था से कोमल थे। फिर भी जब सोमल ब्राह्मण ने उनके मस्तक पर धधकते अगार रखे तो ऐसे विकट समय में भी उन्होंने अपनी ग्रन्तरात्मा मे अशुभ भावना उत्पन्न नही होने दी । असह्य कष्ट के अवसर पर भी उन्होने ऐसी शुभ भावना धारण की कि सोमल तो मेरे सयम की परीक्षा कर रहा है अर्थात सयम धारण करके में शारीरिक और मानसिक दुख से मुक्त हुआ हू या नहीं, इस बात की जाच कर रहा है । इस प्रकार विचार कर गजमुकुमार मुनि ने मस्तक पर वधकते अंगार रखने वाले सोमल ब्राह्मण पर भी मध्यस्थभाव धारण किया । ऐसी मध्यरथभावना से तृष्णा का नाश होता है और दुःख के मूल कारण - तृष्णा का नाम होने से दुख का भी नाश हो जाता है । अगर आप दुःख का नाश करना चाहते है और अव्यावाच सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो भावना द्वारा तृष्णा का निरोध कीजिए । तृष्णा का निरोध करने में ही कल्याण है ।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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