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________________ तीसरा बोल-१६७ जड, नाशवान् और जगत् की जूठन के समान हैं । पौद्गलिक पदार्थों का यह स्वरूप समझ मे न आने के कारण ही उनके प्रति ममत्व-भाव जागृत होता है । लेकिन धर्म पर श्रद्धा उत्पन्न होने पर यह बात समझ मे आ जायेगी कि पर-पदार्थों मे रुचि रखना एक प्रकार से आत्मविकास में बाधा उत्पन्न करना है । धर्मश्रद्धा उत्पन्न होने से सासारिक पदार्थों के प्रति अरुचि और विरक्ति उत्पन्न हुए बिना नहीं रहती। अतएव धर्मश्रद्धा जागृत करो तो पर-पदार्थों में रुचि भी नही रहेगी और आत्मविकास साधने मे बाधा भी खडी नही होगी। कहने का आशय यह है कि वर्म स्थूल नही, सूक्ष्म है और इस कारण वह दिखाई नही देता । फिर भी प्राण के समान उसकी आवश्यकता है । जब धर्म की आवश्यकता है तो उसे जीवन में उतारने के लिए श्रद्धा की भी आवश्यकता है। धर्मश्रद्धा जागृत होने पर सासारिक पदार्थो के प्रति विरक्ति हो जाती है । इस विरक्ति से क्या लाभ होता है? __इस विषय मे कहा गया है कि सासारिक पदार्थो पर विरक्ति होने से मनुष्य गृहस्थधर्म का त्याग कर अनगारधर्म स्वीकार कर लेता है। सूत्र में प्रत्येक बात की सूचना मात्र की जाती है । यह सूचना हृदय मे जितनी फैलाई जाये, उतना ही अधिक प्रकाश मिलता है । सूर्य एक ही है, मगर उसका प्रकाश इतना फैला होता है, उसी प्रकार सूत्र के गन्द भी जीवन मे अपार प्रकाश डालने वाले हैं । अतएव सूत्र मे कही हई इस बात पर भी विस्तारपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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