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________________ í तीसरा, बोल- ६५ C शरीर जन्म, जरा, रोग तथा मृत्यु आदि से घिरा है । शरीर का यह स्वरूप जानते हुए भी इसे अपना मानना कितनी बडी भूल है । तुम जिस शरीर पर ममत्व रखते हो, उस शरीर को टिका रखने मे समर्थ हो ? तुम्हारे - हमारे शरीर की तो बात ही क्या है । जिनके शरीर की रक्षा दो-दो हजार देव - करोड चक्रवर्तियो की शक्ति वाला एक - एक देव होता है करते हैं, उनका शरीर भी सुरक्षित नही रह सका ! सनत्कुमार चक्रवर्ती के शरीर में जब रोग उत्पन्न हुए तो क्या देव भी उसे बचा सके थे ? रोगो से सुरक्षित रख सके थे ? जब देव भी शरीर की रक्षा करने में और शरीर टिकाये रखने मे सहायक न हो सके तो दूसरो से क्या आशा की जा सकती है ? और इस तरह शरीर भी तुम्हारा नही रह सकता तो अन्य पदार्थ तुम्हारे किस प्रकार रह सकेगे ? 3 समार के स्थूल पदार्थ पुद्गलो से बने हैं । गलना, सडना, नष्ट होना और विखर जाना पुद्गलो का स्वभाव है । पुद्गलो का स्वभाव जड और चल है । यह जड पदार्थ ससार की जूठन हैं । मकोडे गुड की भेली खा जाएँ और उसके स्थान पर हग जाएँ तो क्या वह गुड खाने की आपकी इच्छा होगी ? नही । आप यह बात तो समझते हैं, मगर अन्य पुद्गलो के विषय मे भी यह बात समझ लीजिए । क्या संसार मे कोई पुद्गल ऐसा है जो अब तक किसी के उपभोग मे न आया हो ? अगर कोई भी पुद्गल- ऐसा नही है तो पुद्गल को ससार की जूठन क्यो न कहा जाये ? पुद्गल मात्र दुनिया की जूठन है । इस जूठन के उपयोग " 1
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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