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________________ तीसरा बोल-१८१ और सस्कृति को रक्षा करने में अच्छा सहायक बन सकता है । प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग भी होता है और दुरुपयोग भी होता है, यह एक सामान्य नियम है। किन्तु प्रायः देखा जाता है कि सदुपयोग बहुत कम मात्रा में होता है और दुरुपयोग अधिक मात्रा मे । यही कारण है कि प्रत्येक महत्वपूर्ण वस्तु से विकास को अपेक्षा विनाश ही अधिक होता है । विज्ञान का अगर सदुपयोग किया जाये तो उससे मानवसमाज का बहुत कुछ कल्याण-साधन किया जा सकता 18 आज तो विज्ञान धर्म और सस्कृति के ह्रास का ही कारण बना हुआ है। सम्पूर्ण व्याख्यान को पढने मे प्रतीत होगा कि आचार्य श्री का आशय यह है कि - विज्ञान का सदुपयोग होना उसी समय संभव है, जब धर्मभावना की प्रधानता हो और धर्म ही विज्ञान का पथ-प्रदर्शन करता हो । आज के वैज्ञानिक इस तथ्य को भूले हुए हैं। उन्होने धर्म को नाचोज मानकर विज्ञान को ही सृष्टि का एकमात्र सम्राट बनाने की चेष्टा की है। इसी कारण विज्ञान, विनाश का सहचर बन गया है । जब धर्म को नेतृत्व मिलेगा और विज्ञान उसका अनुचर बनेगा, तभी वह विश्वकल्याण का साधन वन सकेगा । धर्म जहा नेता होगा वहा विज्ञान के द्वारा किसी का विनाश होना सभव नही, अन्याय और अत्याचार को अवकाश नही । धर्म के अभाव में विज्ञान मनुष्यसमाज के लिए विष ही बना रहेगा । धर्म का अनुचर बनकर वह अमृत बन सकता है । - सपादक
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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