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________________ ११६-सम्यक्त्वपराक्रम (१) जाये तो सघवल की शक्ति समग्र राष्ट्र में हलचल पैदा कर देगी । संघवल धर्म का प्राण है । जहाँ सघबल नही होता वहा धर्म भी जीवित नही रह सकता कहने का आशय यह है कि संघ से सगति हो तो मघ बहुत कुछ काम कर सकता है, अतएव अपने सजातीय और सधर्मो भाइयो को दूर नही रखना चाहिए और उन्हे भी प्रेमपूर्वक अपनाना चाहिए। आत्मा का कल्याण करने के लिए भगवान् ने सवेग मे पराक्रम करने के लिए कहा है। मोक्ष की अभिलाषा करना 'सवेग' कहलाता है । अगर तुमने भव-बधनो का स्वरूप समझा होगा और तुम्हे उन बधनो से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा हुई होगी तो तुम्हारे भीतर अवश्य ही सवेग जागृत होगा। जहा तक सवेग जागृत नही होता वहा तक मोक्ष जाने की बात केवल बात ही वात है । शास्त्र में कहा है - वाया वीरिय मित्रोण समासासेन्ति अप्पय । उ० ६-६ अर्थात् जव तक सवेग जागृत नही होता तब तक वाणी के विलास हाग ही आत्मा को आश्वासन देना पड़ता है। पर बडी-बडी बातो से दिये गये आश्वासन से आत्मा को सतोष किस प्रकार हो सकता है ? अतएव शास्त्र की वाणी को जीवन मे ओतप्रोत करके सवेग जागृत करो अर्थात् हृदय से मोक्ष की अभिलापा जीवित करो। मोक्ष की अभिलापा होना सवेग है, यह तो आप समझ गये। मगर सवेग का फल क्या है ? यह भी जानना चाहिये । इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है कि सवेग द्वारा अनुत्तर अर्थात् प्रधान धम पर श्रद्धा उत्पन्न होती है। प्रधान
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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