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________________ ११४ - सम्यक्त्वपराक्रम (१) यालय में मुकदमा दायर करते हो । अर्जुन, भीम और द्रौपदी - तीनो दुर्योधन से बहुत खिलाफ थे, फिर भी उन्हे युधिष्ठिर के वचनो पर ऐसा दृढ विश्वास था तो तुम्हे भगवान् के वचनो पर कितना अधिक विश्वास होना चाहिए ! भगवान् कहते है - सिर काटने वाला वैरी भी मित्र ही है । वास्तव मे तो कोई किसी का सिर काट ही नही सकता, किन्तु आत्मा ही अपना सिरच्छेद कर सकती है । अत आत्मा ही अपना असली वैरी है । अर्जुन ने गर्व से कहा- 'भले ही तुम हमारे हित की बात कहते होओ, मगर अपने भाई की बात के सामने मै तुम्हारी बात नहीं मान सकता । मुझे अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर की बात शिरोधार्य करके दुर्योधन को तुम्हारे बधन से छुडाना है । अत तुम उसे वधन - मुक्त कर दो। अगर यो नही मुक्त करना चाहते तो युद्ध करो । अगर तुमने हमारे हित के लिये ही उसे कैद कर रखा हो तो मेरा यही कहना है कि उसे छोड़ दो। मुझे उसकी करतूते नही देखनी, मुझे अपने भाई की आज्ञा का पालन करना है । अतएव उसे छोड दो । आखिर अर्जुन दुर्योधन को छुड़ा लाया । युधिष्ठिर अर्जुन पर बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे- 'तू मेरा सच्चा भाई है ।' उन्होने द्रौपदी से कहा देखो, इस जंगल में कैसा मंगल है | इस प्रकार युधिष्ठर ने जगल मे और सकट के समय मे धर्म का पालन किया था । मगर इस पर से आप अपने विषय मे विचार करो कि आप उपाश्रय मे धर्म का पालन करने आते है या अपने अभिमान का पोषण करने आते है ? धर्मस्थान मे प्रवेश करते ही 'निस्सही निस्सही '
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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