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________________ ६६-सम्यक्त्वपराक्रम (१) हे पथिक ! तू मेरा यह साहित्य लेता जा, इससे तुझे परलोक के मार्ग में कठिनाई नही पडेगी। अब तुम अपनी विवेक-बुद्धि से विचार करो कि दोनो मे से किसकी बात माननी चाहिए ? भगवान् महावीर जो कहते है वह वया स्वार्थबुद्धि से कहते है ? अगर नही, तो उनके कथनानुसार आचरण करने मे तुम्हारी क्या हानि है ? वे कहते है-तुझे परलोक जाना है, इसलिए मेरे बतलाए सद्गुण अगर धारण कर लेगा तो तेरा परलोक का मार्ग सुगम हो जायेगा । तुझे सद्गुण धारण करने में क्या विरोध है ? सत्य, प्रामाणिकता, दया, नीति आदि सद्गुण धारण करने से तेरा क्या बिगड जायेगा ? इन सद्गुणो के कारण इस लोक मे सुख प्राप्त होता है और जिन सद्गुणो से इस लोक मे सुख होता है, वे परलोक मे सुखदायक क्यो नही होगे ? सद्गुणो के पाथेय (भाता) बिना परलोक का पथ बडा ही कठिन मालूम होगा । अतएव परलोक के पथ पर प्रयाण करने से पहले भगवान् महावीर सद्गुणो के जिस पाथेय को साथ लेने की सलाह देते हैं, उसे शिरोधार्य करके पहले से ही धर्म का भाता तैयार कर लेना चाहिए। भगवान् ने तो राजपाट का त्याग करके त्य गमय जीवन स्वीकार किया था, अतएव लोगो से कुछ लेने के लिए या किसी अन्य स्वार्थभावना से तो उन्होने ऐसा उपदेश दिया नही है, फिर उनकी बात मान लेने मे क्या बाधा है ? उस मुसलमान भाई की परलोक सम्बन्धी भ्रमणा इस शास्त्रीय-सिद्धान्त से दूर हो गई। भगवान् महावीर क्या कहते है, तुम भी इस बात पर बराबर विचार करो और अगर उनकी बात सत्य प्रतीत हो तो उसे जीवन में उतारो।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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