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________________ सूत्रपरिचय (क) श्री उत्तराध्ययनसूत्र के 'सम्यक्त्वपराक्रम' नामक २६वें अध्ययन के विषय मे यहाँ कहना है । इस अध्ययन का अर्थ बहुत विस्तृत और विशाल है। मगर पहले यह देख लेना चाहिए कि श्री उत्तराध्ययनसूत्र किस प्रकार बना है ? यह बात जानने से इस पर प्रीति और रुचि उत्पन्न होगी। परम्परा के अनुसार कहा जाता है कि उत्तराध्ययनसूत्र भगवान् महावीर की अन्तिम वाणी है। विचार करने पर यह कथन सत्य प्रतीत होता है, क्योकि समग्र सूत्र के अर्थ के कर्ता-अर्थागम के उपदेष्टा-अर्हन्त भगवान् ही माने जाते हैं । इस सम्बन्ध में यह उल्लेख पाया जाता है कि-- अत्थं भासइ अरहा, सुत्त गुत्थइ गणहरा । अर्थात्-अर्हन्तो की अर्थ रूप प्ररूपणा को ही गणधर सूत्र के रूप मे गू थते हैं। अतएव यह स्पष्ट है कि उत्तराध्ययनसूत्र के अर्थकर्ता भगवान् महावीर ही हैं। उसके पाठ के कर्ता कोई महास्थविर और सूत्र के पारगामी महानुभाव है । भद्रबाहु स्वामी ने इस सूत्र पर नियुक्ति रची है। अत. यह सब कथन युक्तिसगत ही प्रतीत होता है । - भद्रबाहु स्वामी द्वारा नियुक्ति की रचना होने से यह
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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