SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन का प्रारम्भ-८५ न यहाँ सुधर्मास्वामी हैं, न जम्बूस्वामी ही है। यहाँ तो हम लोग हैं । अगर हम लोग सब दुःखो से मुक्त होना और परम शान्ति प्राप्त करना चाहते है तो सुधर्मास्वामी ने हम लोगो के कल्याण के हेतु भगवान् से सुने हुए जो वचन कहे है, उन्हे हृदय मे धारण करके पालन करना चाहिए । अपनी बौद्धिक दृष्टि से देखने पर इस शास्त्र के कोईकोई वचन समझ मे न आये यह सभव है, परन्तु शास्त्र के वचन अभ्रान्त हैं । इसलिए इन सिद्धान्त-वचनो पर दृढ विश्वास रखकर उनका पालन किया जाये तो अवश्य ही कल्याण होगा । कहा जा सकता है हमारे पीछे दुनियादारी की अनेक झझटे लगी हैं और इस स्थिति मे भगवान् के इन वचनो का पालन किस प्रकार किया जाये ? ऐसा कहने वालो को सोचना चाहिए कि भगवान् क्या उन झझटो को नही जानते थे ? इस पचमकाल को और इसमें उत्पन्न होने वाले दु.खो को भगवान् भलीभॉति जानते थे और इसी कारण उन्होने दुख से मुक्त होने के उपाय बतलाये हैं। फिर भी अगर कोई यह उपाय काम मे नही लाता और सिद्धान्त-वचनो पर श्रद्धा नही करता तो वह दु.खो से किस प्रकार मुक्त हो सकता है ? हम लोग कई वार सुनते है कि सत्य का पालन करते हए अनेक महापुरुषो ने विविध प्रकार के कष्ट सहन किये हैं, परन्तु वह महापुरुष कभी ऐसा विचार तक नही करते कि सत्य के कारण यह कष्ट सहने पडते हैं तो हमे सत्य का त्याग कर देना चाहिए । महापुरुपो का यह आदर्श अपने समक्ष होने पर भी अगर हम सत्य का आचरण न करे तो यह हमारी कितनी बडी अपूर्णता कहलाएगी ? अतएव भग
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy