________________
धारा • १ :
विश्वतन्त्र जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए। अजीवदेसमागासे, अलोए से वियाहिए ॥१॥
[उत्त० अ० ३६, गाथा : २] जिसमे जीव भी हो और अजीव भी हो, उसे 'लोक' कहते है, तथा जिसमे अजीव का एक भाग अर्थात् केवल आकाश हो, उसे "अलोक' कहते है।
विवेचन-जिसे हम विश्व, जगत् अथवा दुनिया कहते है, उसके दो विभाग है : एक लोक और दूसरा अलोक । इनमे लोक, जीव और अजीव अर्थात् चेतन तथा जड पदार्थों से व्याप्त है, जबकि अलोक मे अजीव-जीव रहित आकाश के अतिरिक्त अन्य कुछ नही है। दूसरे शब्दो मे कहे तो सर्वत्र आकाश ही आकाश फैला हुआ है। उसका एक भाग लोक है, जबकि शेष भाग अलोक है-अर्थात निरवधि आकाश ( Infinite Space ) है।