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[भगवान् महावीर
ही पवित्र मानकर ग्रहण करने लगे। ऐसा करते-करते वहां एक बड़ा गड्डा हो गया और कालान्तर मे वही सरोवर बन गया। आज उस सरोवर के बीच एक श्वेत, सुन्दर मन्दिर विराजमान है और प्रतिवर्ष लाखों मनुष्य वहाँ की भावपूर्ण यात्रा करते हैं। • उपसंहार
भगवान् की वाणी विश्वमैत्री तथा अनुकम्पा के अमृत से सराबोर थी तथा उसमे गुणानुराग और मध्यस्थता का अनाहत नाद पूर्णतया गुञ्जित था। भगवान् को वाणी मे सत्य की अनन्त आभा से परिपूर्ण विमल-प्रकाश झलक रहा था और अपने दीर्घ अनुभव का निचोड़ ययार्थरूप में अवतरित हुआ था। इसीलिये उनकी वाणी गिव-सुन्दर वनी थी और लाखों-करोडो मानवो के हृदय मे नवचेतना भरने मे सफल हुई थी। प्रिय पाठको ! आप उस वाणी का उस वचनामृत का परम श्रद्धा से पान करे, यही हमारी अभ्यर्थना है।
शिवमस्तु सर्वजगतः।