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निर्वाण]
[४५ वह अस्तित्व स्व से भिन्न अवयवो से घटित नही है इसलिए सब पदार्थ असत् भी है। कोई भी पदार्थ सर्वथा वाच्य और सर्वथा अवाच्य नही है। एक क्षण मे एक धर्म वाच्य भी है और समग्र धर्मी के दृष्टि से वह अवाच्य भी है।
जो जानता है कि पदार्थ नित्य भी है, वह जीवन और मृत्यु मे सम रहता है। जो जानता है कि पदार्थ अनित्य भी है वह सयोगवियोग मे सम रहता है।
जो जानता है कि पदार्थ सदृश भी है, वह किसी के प्रति घृणा नही करता। जो जानता है कि पदार्थ विसदृश भी है, वह किसी के प्रति आसक्त नही बनता।
जो जानता है कि प्रत्येक पदार्थ सत् है, वह दूसरे की स्वतत्र सत्ता को अस्वीकार नही करता। जो जानता है कि प्रत्येक पदार्थ असत् भी है, वह किसी को परतत्र करना नही चाहता।
जो जानता है कि प्रत्येक पदार्थ वाच्य भी है, वह सत्य को शब्द के द्वारा सर्वथा अग्राह्य नही मानता। जो जानता है कि पदार्थ अवाच्य भी है, वह किसी एक शब्द को पकडकर आग्रही नहीं बनता।
इस प्रकार जो सत्य को अनेक दृष्टिकोणो से देखता है, वही सही अर्थ मे साम्ययोगी बन सकता है। • निर्वाण
धर्म की चरम परिणति निर्वाण मे होती है। निर्वाण का अर्थ है-शान्ति-"सति निव्वाणमाहिय" । निर्वाण से पहले आत्मा