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[ प्रस्तावना
परिणाम सब देशों और कालों मे समान होता है, इसलिए वह गाश्वत है । वह व्यापक और शाश्वत है इसीलिए वैज्ञानिक है। वह प्रयोगसिद्ध है। उसका परिणाम निश्चित और निरपवाद है। धर्म हो और मुक्ति न हो, धर्म हो और आत्मा पवित्र न हो यह कभी नही हो सकता। जिसने धर्म को देखा वह मुक्त हुआ, जब देखा तव मुक्त हुआ, जहाँ देखा वही मुक्त हुआ। धर्म और मुक्ति मे व्यक्ति, काल और देश का व्यवधान नहीं है। दीपक अपने आप में प्रकाशित होता है, जव जलता है तभी प्रकाशित होता है और जहाँ जलता है वही प्रकाशित होता है। • धर्म क्या और क्यों ?
भगवान् महावीर का धर्म आत्म-धर्म है। वह आत्मा के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। आत्मा जो है वह धर्म से सर्वथा भिन्न नही है और धर्म जो है वह आत्मा से सर्वथा भिन्न नही है । धर्म आत्मा से वाहर कही नही है। इसलिए वह आत्मा से अभिन्न भी
है और वह आत्मा के अनन्त गुणों मे से एक गुण है। आत्मा गुणी __ है और धर्म गुण है। इस दृष्टि से वह आत्मा से भिन्न भी है।
आत्मा जब केवल आत्मा हो जाती है-शरीर, वाणी और मन से मुक्त हो जाती है, सारे विजातीय तत्त्वो-पुद्गल द्रव्यो से मुक्त हो जाती है तब उसके लिए न कुछ धर्म होता है और न कुछ अधर्म । वह जब तक विजातीय तत्त्वों से आवद्ध रहती है तब तक उसके लिए धर्म और अधर्म की व्यवस्था होती है। जिन हेतुओं से विजातीय तत्त्दो का आकर्पण होता है वे अवर्म कहलाते हैं और