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ब्राह्मण किसे कहा जाय?]
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जहा पोम्मं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामेहि, तं वयं वम माहणं ।।८।। जैसे कमल पानी में उत्पन्न होने पर भी पानी से लिप्त नही होता, वैसे ही जो ससार के वासनामय वातावरण मे रहते हुए भी काम-भोगों से लिप्त नही होता, उसको हम ब्राह्मण कहते है।
अलोलुयं मुहाजीवि, अणगारं अकिंचणं । असंसत्तं गिहत्थेसु, तं वयं बूम माहणं ॥६॥ जो लोलुपता-विहीन, भिक्षाजीवी, स्वेच्छा से त्याग करनेवाला और अकिंचन हो तथा गृहस्थो मे आसक्ति रखनेवाला नही हो, उसको हम ब्राह्मण कहते है।
जहिता पुनसंजोगं, नाइसंगे य बन्धवे । जो न सजइ भोगेसु, तं वयं बूम माहण ॥१०॥ जो ज्ञातिजन और बन्धुजनो का पूर्व सम्बन्ध छोड देने के पश्चात् भोग मे आसक्त न होवे, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं ।
पसुबंधा सबवेया, जटुंज पावकम्मुणा। न तं तायंति दुस्सील, कम्माणि बलवंति हि ॥११॥ सभी वेद पशुओ के वध-बन्धन के लिए है और यज्ञ पापकर्म का हेतु है। अतः वे वेद अथवा वे यज्ञ ( और वे यज्ञ करनेवाले आचार्य आदि ) दुराचारी का उद्धार नही कर सकते ; क्योकि कर्म अपना फल देने मे अत्यन्त ही बलिष्ठ है !