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________________ [प्रस्तावना ३२] • उपयोगितावादी दृष्टिकोण-आत्मा और परमात्मा आत्मा है। वह अपने प्रयल से परमात्मा बन सकता है। यह उपयोगितावादी दृष्टिकोण है। भगवान ने कहा-वन्वन भी है और मुक्ति भी है। जिस प्रवृत्ति से आत्मा और परमात्मा की दूरी बढनी है, वह वन्वन है और जिनसे उनकी दूरी कम होती है, अन्ततः नही रहती, वह मुक्ति है। मिय्या दृष्टिकोण, मिथ्याज्ञान और मिथ्या चारित्र-इनमे आत्मा बघता है। सम्यक दृष्टिकोण, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र-इनसे आत्मा मुक्त होता है-परमात्मा बनता है। परमात्मा पूर्ण सत्य है। आत्मा अपूर्ण सत्य है । आत्मा का अन्तिम विकास परमात्मा है। जब तक आत्मा अपने अन्तिम विकास तक नही पहुँचता, तब तक वह अपूर्ण रहता है। अन्तिम स्थिति तक पहुँचते ही वह पूर्ण हो जाता है। इसलिए यह सही है कि आत्मा अपूर्ण सत्य है, पूर्ण सत्य है परमात्मा। आत्मा परमात्मा का वीज है और परमात्मा आत्मा का पूर्ण विकास। बीज और विकास ये दो भिन्न स्थितियाँ हैं किन्तु भिन्न तत्व नही। आत्मा और परमात्मा ये दोनों एक ही तत्त्व के दो भिन्न रूप हैं किन्तु आत्मा के उत्तर रूप से भिन्न किसी परमात्मा और परमात्मा के पूर्व रूप से भिन्न किसी आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। उनके मौलिक एकत्व की दृष्टि से भगवान ने कहा-जो आत्मा है, वही परमात्मा है और जो परमात्मा है, वही आत्मा है। स्थिति-भेद की दृष्टि से
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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