________________
सत्य की मीमांसा]
[२६ की परिधि मे आते है। भगवान् अरिष्टनेमि और उनसे पूर्ववर्ती तीर्थकर ( भगवान् ऋषभ तक ) इतिहास की परिधि से अस्पृष्ट है। संभव है, आनेवाला युग उन्हे ऐतिहासिक-पुरुष प्रमाणित कर दे।
वही धर्म आत्मा का सहज गुण होता है जो सत्य का सीधा स्पर्श करे। जैन धर्म बाह्य विस्तार की दृष्टि से बहुत व्यापक नहीं है, फिर भी वह महान् धर्म है और इसलिए है कि वह सत्य के अन्तस्तल का सीधा स्पर्श करता है। • सत्य की मीमांसा
सत्य क्या है ? यह प्रश्न अनादिकाल से चर्चित रहा है। जो स्थित है, वह सत्य है पर वही सत्य नहीं है । परिवर्तन प्रत्यक्ष है । उसे असत्य नहीं कहा जा सकता। जो परिवर्तन है, वह सत्य है पर वही सत्य नही है। स्थिति के बिना परिवर्तन होता ही नही। जो दृश्य है वह सत्य है पर वह भी सत्य है जो दृश्य नही है। सत्य के अनेक रूप हैं। एक रूप अनेकरूपता का अश रहकर ही सत्य है। उससे निरपेक्ष होकर वह सत्य नही है। सत्य किसी धर्म-प्रवर्तक के द्वारा अज्ञात से ज्ञात और अनुद्घाटित से उद्घाटित होता है। भगवान् महावीर ने कहा- सत्य वही है जो वीतराग के द्वारा प्ररूपित है। सत्य एक और अविभाज्य है। जो सत् है, जिसका अस्तिस्व है, वह सत्य है। यह परम अभेद दृष्टि है। इस जगत् मे चेतन का भी अस्तित्व है और अचेतन का भी अस्तित्व है। इसलिए चेतन भी सत्य है और अचेतन भी सत्य है। मनुष्य चेतन है, स्वय सत्य है फिर भी उसका चेतन से सीधा सम्पर्क नही है और इस लिये