________________
___२६६]
[श्री महावीर-वचनामृत जैसे शकुनिका नामक एक पक्षी अपने शरीर मे लगी हुई धूल को पख फडफडा कर दूर कर देती है, वैसे ही जितेन्द्रिय ऐसा अहिंसक तपस्वी अनशनादि तप करके अपने आत्म-प्रदेशों पर कर्म रूपी जमी हुई मिट्टी को दूर कर देता है।
जं किंचुवक्कम जाण, आउक्खेमस्स अप्पणो । तस्सेव अन्तराखिप्पं, सिक्खं सिक्खेज पण्डिए ॥४॥
[सू० श्रु० १, १०८, गा० १५] यदि पण्डित पुरुप किसी भी तरह अपनी आयु का क्षयकाल जान ले, तो उस से पूर्व वह शीघ्र ही सलेखनारूप शिक्षा को ग्रहण, करे।
खवेत्ता पुनकम्माइं संजमेण तवेण य । सबदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमति महेसिणो ॥५॥
[उत्त० म०२८, गा० ३६] महर्षिगण संयम और तप द्वारा अपने सभी पूर्व कर्मों को क्षीण ___ करके सर्व दुःखों से रहित ऐसा जो मोक्षपद है उसे पाने के लिए प्रयल करते हैं।
तवनारायजुत्तणं, भित्तण कम्मकंचुयं । मुणी विगयसंगामो, भवाओ परिमुच्चए ॥६॥
[उत्त० म०९, गा० २२] तपरूपी वाण से सयुक्त मुनि कर्मरूपी कवच को भेदकर कर्म के साथ होनेवाले युद्ध का अन्त करता है और भव-परम्परा से मुक्त होता है।