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प्रमाणों के द्वारा प्रकृत वास्तविक अर्थ को ग्रहण करने की व्यवस्था है। इसी से कोई वादि उसे शास्त्रार्थ मे पराजित नही कर सकता ।
उन्ही जिनेन्द्र भगवान महावीर के वचनामृत के इस संकलन को श्री धीरजलालजी शाह ने सम्पादित किया है। मेरा उनसे प्रथम परिचय इसी सकलन के माध्यम से हुआ। और उनकी प्रेरणा से इस प्रथम परिचय के उपहार रूप में अपने दो शब्द पाठको को भेट. करता हूँ। इसके नये सस्करण मे इस सकलन को और भी परिमार्जित और विस्तृत किया जाये ऐसी मेरी भावना है।
श्री स्याहाद महाविद्यालय
वाराणसी दि० २२-६-६३
कैलाशचन्द्र शास्त्री