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________________ कुंदकुंदाचार्य चरित्र. ५१ · एकदम थाय नहि. उभयक्षना लोक कंटाळ्या, ते वखते एक दिवसे कुंदकुंदाचार्ये एवो निश्चय कर्यो के आज हुं खरा निश्चय पर लावुं, त्यारेज उठीने सभानी बहार जाउं आवी प्रतिज्ञा करीने तेलो सभामां आवी दाखल थया के तरतज भरसभामां तेनो उपहास थयो एटले एवी रीते थयुं के एक नानुं माछ श्वेतांबरी लेके कमंडलुमां नांखी तेने ढांकी दइ कुंदकुंदमुनिने एवो प्रश्न कर्यो के आमां शुं छे ! आम ज्यारे पूछयुं के तरतज तेणे तेमां कमलपुप्प के एवो उत्तर आप्पो अने तरतज कमळपुष्प सर्वने देखाइयुं, त्यारे श्वेतांवरी लोक झांखा पडया, परंतु आजनो प्रसंग योग्य नथी, एवं तेमणे क. बाद शरु थयो. ते वादमा श्वेताचरोए वीर, कालिकादेवी इत्यादि जैनमत विरहित देवोनुं आवाहन कर्यु, पण श्री कुंदकुंद मुनिए मूलमंत्रनुं स्मरण करी ते ठेवोनु त्या आगमनज बंध कर्यु पछी बाद कर्यो अने कयुं के दिगंबरी धर्म प्रथम के aajat प्रथम - एनो कोइ प्रबळ पुरावो बतावो अगर सिद्ध करी आपो. त्यारे सर्व श्वेतांबरोने लटपट यह पढी अने तेज रहित थह स्तव्ध रखा. पछी कुंदकुंद आचार्य चंने संघने साथै लइ गिरनार डुंगर उपर गया, अने त्यां रहेला श्रीमन्नेमिनाथ निर्वाण स्थाननुं दर्शन करी, विदेह क्षेत्रवासी
SR No.010458
Book TitleKundkundacharya Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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