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________________ कुंदकुंदाचार्य चरित्र. ३९ उप्तन्न थयेली शका कोण निवारशे तेनी मोटी मुशिबत थइ, पण तेना मनमा एक युक्ति सूझी - ते ए के + विदेह क्षेत्रमां श्रीमंदर स्वामी साश्वत केवलो छे त्या जइने तेनी पांसेथी स्वतंत्र शंकानु निवारण करवुं, पण आपणे मानवी छीए. ते क्षेत्रमां आपणु गमन क्याथी थइ शके ? विद्याधर के विमाननी सहायता वगर ते करवुं मुश्केल अने अशक्य. त्यारे या विचारथी ते निरुपाय थइने पोताना गुरुए कहेली मुनि क्रिया सिवाय बीजी गति नथी तेम जाणी तप करवा मंडया अने पंच महाव्रत उत्तम रीतिथी पालन करवा लाग्या. पछी कोइ एक वेळा श्री कुंदकुदाचार्य फरतां फरता एकला बारापुरीना बहीरुद्यानमा आवी तप करवा लाग्या, अने दृढ ध्यानथी पदस्थ, पिंडस्थ, रुपस्थ अने रुपातीत ए चार ध्याननो विचार करवा लाग्या. ध्यानस्थ थयेला मनमा तेणे श्रीमदरस्वामीनुं समोशरण रचीने श्रीमदरस्वामीने त्रिकरण शुद्धिथी नमस्कार कर्या, तेनी साथे चमत्कार एवो थयो के विदेह क्षेत्रमां रहेला श्रीमंदरस्वामी ते आचार्यने त्या समोशरणमां-सभामां गंभीर नादथी दिव्य ध्वनि द्वारा ' सद्धर्मवृद्धिरस्तु ' एवो आर्शि + नोंध - विदेह क्षेत्र सबधी भुगोलात्म वर्णन आगळ योड़क यूँ छे,
SR No.010458
Book TitleKundkundacharya Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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