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________________ कुंदकुंदाचार्य चरित्र. काळमां जैन विषये रहेलो हस्तिना पीडयमानोऽपि न गच्छे. जिनमंदिरम् ।। सापने जतो करवो पण जैनने "मारवो"जे एक पोकळ तिरस्कार केवळ जैनना संघनी शक्तिना अभावने लइने दीसतो हतो तेनो आज घणोखरो अटकाव थयेलो छ, अने जैनोनी खरी उन्नतिनी आ शतकमां.शरुआत थइ छ एटले कहेवानुं तात्पर्य ए छे के प्रत्यवाय तो बीलकुल देखातोज नथी. केवळ द्वेष वुद्धिथीज जैनोना साहित्यने शुं पण जैनोने सुद्धा आपणा प्रेमाळ देशबंधु तरफथी अर्घ चंद्र मळ्यो हतो, पण हुं खात्रीथी कहुं छु के आपणी दक्षिण महाराष्ट्र सभाए जे क्रम स्वीकार्यों छे, ते जो सर्व जैन संस्था स्वीकारशे, तोपरिणाममा सर्वमांथी एकदम उन्नतिए पहोंचनार यहेला जैनज थशे. आथी सर्व लोकने(जापानी लोकने माटे हाल कहेवाय छे तेम)आश्चर्य श्रशे ! जैन बाडमयनां खरां मर्म अने महत्व जाणनारा पंडितो हाल जर्मनी सुद्धामां पडया छे. काल दास, भवभूति सरखा कवि-शा माटे आगळ आवे छे ? अने हरिश्चंद्र (धर्मशर्माभ्युदय कान्यना कर्ता), वाग्भट्ट (नेमिनिर्वाण अने अलंकार शास्त्रना कता), वीरनंदी [चंद्रप्रभ काव्यना कर्ता], वादिभसिंह(जीवंधर चम्पूना कर्ता), गुणभद्र [आत्मानुशासनना कर्ता], आवा अनेक जैन विद्वानो अप्रसिद्ध का रहे ए समजवानो समय नजदीकज
SR No.010458
Book TitleKundkundacharya Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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