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________________ जणाववा माटे तेनु आलेखन वर्तुळ (Circle) थी छता हु समजदार छु हु बुद्धीगाली छु, ज्ञानी छ, न करता कमान (Spral) थी करेलु छे व्यक्तिमा एवा मिथ्याभिमाननु ज बीजु नाम मिथ्यात्व छ, (Personal) थी जाति (Impersoral) मा अज्ञान होवा छता ज्ञानीने गरण न जवु ए व्यप्टि (Individual) माथी समप्टि (Universal) मिथ्याभिनिवेश छे, अने एना कारणे अनान दोष मा जवा माटे मात्र भावज समर्थ छ, ज्ञानके टळतो नथो, उलटो दृढ वने छे नमस्कार मत्र क्रिया तेमा पूरक बने छे भाव ज्या मुधी विश्व- ए मिथ्याभिनिवेगनु औपध छे ए रीते नमव्यापी न बने त्या सुधी आहत छ ते ज्यारे स्कारमा हु अजान छु एम कबुलात छे, ए सर्वव्यापी बने त्यारे अनाहत थाय छे ज्ञान अनेकबुलात अज्ञाननी गहीं करावे छे, अने ज्ञानीनी क्रियाना फळ परिमित छे भाव नु फळ अपरि- स्तुति करावे छे, जीवमा सरळ भाव प्रगटावे छे, मित छे ते अनाहतनु आलेखन सूचवे छे अने सरळताज मोक्षमार्गनी प्रश्रम गरत छे भावमा समर्पण छे, त्याग छे तेथी पूज्य छे वालक अज्ञान छे पण मातापिताने गरणे रहे पुज्यतानुं अवच्छेदक दान (Giving)छे परतु छे, तो ज्ञानी पण थाय छे अने सुग्वी पण थाय ग्रहण (Receivirg) नहि सर्वोत्कृष्टदान समता छे परतु अज्ञाननी साथै हठ होय, पोताथी भाव छे समता भाव सर्व माटे समान इच्छा अधिक ज्ञानीना भरणे रहेवानी तैयारी न होय, घरावे छे तेथी ते अनाहत छे तो ते बालक जेम मोटु थतु जाय छे, तेम वधुने नमस्कार ए प्रथम धर्म शाथी ? वधु आपत्तिमा आवी पड़े छे मोक्ष मार्गमा पण अज्ञान क्षन्तव्य छ परतु तेनो अभिनिवेश जैनागमनु प्रथम सूत्र पचमगळ याने नमस्कार अक्षन्तव्य छे निमो' मत्र ते अभिनिवेशने सूत्र छ, तेनु पहेलु पद · नमो' छे ते नमस्कार टाळी आपे छे, 'नमो' मत्र नम्रताने विकमावे क्रियाना अर्थमा व्याकरण मान्य अव्यय पद छे छ 'नमो' मत्र बडे ज्ञानीओनी पराधीनतानो एटले एनो अर्थ हु नमस्कार करू छु, एवो थाय स्वीकार करवामा आवे छे छ तेथी 'नमो अरिहताण' नो स्पप्ट अर्थ हु अरिहत परमात्माओने नमस्कार करू छु एवो नम्रता अने आधीनता थाय छे ___ ज्ञानथी अज्ञानता टळे छे ए वात साची छे, अहि नमो पद प्रथम मकीन ए सूचव्य छे के तो पण अधरु ज्ञान ज्या सुधी छे, त्या सुधी 'नमस्कार' ए प्रथम धर्म छे नमस्कार ए धर्म तेनो पण अहकार थवानी शक्यता छे माटे तरफ प्रयाण करवा माटे मूळ भूत-मौलिक वस्तु ज्ञान ज्या मुधी पूर्ण न थाय त्या सुधी नम्रता छे नमस्कारथी शभभाव जागे छे शभभावथी परम आवश्यक छ 'नमो' मत्र स्व लघु भावन कर्मक्षय थाय छे अने कर्मक्षयथी सकल कल्या- सदा टाकावी राखे छ अने ए लघु भावना णनी सिद्धि थाय छे प्रभावेज जीवपूर्ण दशाने एक वखत पामी शके मिथ्याभिनिवेश न औषध छे ज्ञान ज्या सुधी अपूर्ण छे, त्या सुधी पूर्ण ज्ञानीनी पराधीनताज जीवने आगळ वधवामा जीवनु ससार परिभ्रमण अज्ञानने कारणे छे सहायकारी बनी शके छे ज्ञानी प्रत्ये नम्रता अने मिथ्यात्व तेनी पुष्टि करे छे अज्ञान होवा अने ज्ञानीनी आज्ञा प्रत्ये पराधीनता, ए छद्म १७२ ] [ श्री कुंभोजगिरी शताब्दि महोत्सव
SR No.010457
Book TitleKumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
PublisherKumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publication Year1970
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size3 MB
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