SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RA * श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जिन स्तवन * ( प्रथम जिनेसर पूजवा) मोहनगारो मारो, दु.खनो हरनारो मारो, प्राण पियारो मारो, साहिबो; प्रभु माहरा, दिलभर दरिसण आप हो, प्रभु माहरा, मुगति तणा फल आप हो मोहन ॥ १ ॥ कर जोडी ओळग करुं, प्रभुजी माहरा, रात दिवस अंक ध्यान हो; जाणो रखे देवं पडे, प्रभुजी माहरा, वात सुणो नहि कान हो मोहन ॥२॥ करता नित्य भोळामणी, प्रभुजी माहरा, इम केता दिन जाशे हो, भीना जे ओलग रसे, प्रभुजी माहरा, ते केम आकुला थाशे हो, मोहन ॥ ३ ॥ देव घणा छ अनेरडा, प्रभुजी माहरा, ते मुज नवि सुहाय हो; फळ थाये जे तुम थकी, प्रभुजी माहरा, ते किम अन्यथी थाय हो मोहन ॥ ४ ॥ ओछा कदीय न सेविये, प्रभुजी माहरा, जे न लहे पर पीड हो, मोटी लहरी सायर तणी, प्रभुजी माहरा, भागे ते भवनी भीड हो मोहन ।। ५ ।। देता माथु भगति, प्रभुजी माहरा, तिहा नहि केहनो पाड हो; लेशं फळ मन रीझवी, प्रभुजी माहरा, तिहां किश्यू कहेशे चाड हो मोहन ॥६॥ मुख देखी टोलु करे, प्रभुजी माहरा, मे तो जगव्यवहार हो; गिरुआ अहवं न लेखवे, प्रभुजी माहरा, जिम ऊंचा जलधार हो मोहन ॥७॥ श्री शखेश्वर पासजी, प्रभुजी माहरा, व्हाला प्राण आधार हो; काति कहे कवि प्रेमनो, प्रभुजी माहरा, तुमथी क्रोड कल्याण हो मोहन ॥८॥ ( श्री जिनेद्र स्तवनादी काव्य सदोहमाथी ) MEHECLASHESHBARABABHEHEHEARARARARRRRRRRRRA-RAKARARREARRRRRRRRRRRRRRRRRARAKARARRRARARAKS RA RA श्री कुंभोजगिरी शताब्दी महोत्सव ।
SR No.010457
Book TitleKumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
PublisherKumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publication Year1970
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy