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________________ २५२ २५३ २५४ ܪܕ २५४ २५९ 73 ૨૬૦ २६१ ૨૬. IKHk*•kkkkkk *1**** ***** २८९ " 33 3 20 0 ६३ ४० } १४ ५१ १० ६० मृगापुत्र लेखक -- पू पा गतावधानी आचार्यदेव श्रीमद्विजय की तिचद्र सूरीश्वरजी महाराज ११ जिमराज मंदीर व्लाक समोर कोल्हादूर ११ कथा मारी ५ દ जवर दाह, समागम यसे त्याथी पाछो गणधराची मख्या १.६ ११६ सघाचा परिचय वमुतमल प्रसनीय १२५ वर्षापूर्वी कया चोरी ज्वर, दाह, समागम यसे अने धर्मनो वोध थसे धर्मनी आराधनाना प्रभावे त्याथी ते देवलोकमा उत्पन्न यसे त्याथी पाछो जितराज कोल्हापूर भवुतमल प्रशसनीय ५२ वर्षापूर्वी चोवीस तीर्थकरांची माहिती गणधराची संख्या ११६ १११ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिन स्तवन ( कालिंगडो ) अजब बनी रे सुरत जिनकी, खुब बनी रे मूरत प्रभुकी, ||१|| अजब नीरखत नयनयो गयो भय मेरो, मिट गई पलकम मूढता मनकी, ॥२॥ अजब अगे अनोपम अगियां ओपे, झगमग ज्योति जडाव रतनकी, ||३|| अजब प्रभु तुम महेर नजर पर वार, तन मन सव कोडाकोडी धनकी, ॥४॥ अजव अनिश आण वहे सुरपति शिर, मनमोहन अश्वसेन सुतनको ॥५॥ अजव उदयरतन प्रभु पास शंखेश्वर, मान लीजे खिजमत सब दीनकी, ||६|| अजब ( श्री जितेंद्र रतवनादी काव्य सदोमाथी ) [ श्री कुंभोजगिरी शताब्दी महोत्सव ***********⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
SR No.010457
Book TitleKumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
PublisherKumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publication Year1970
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size3 MB
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