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________________ जैन पूजा पाठ सग्रह धूप धान-सुखकार, रोग विधन जड़ता हरे । स०॥७॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अष्टकर्मदहनाय धूप ० ॥ ७ ॥ श्रीफल आदि विधार, निहचै सुर-शिव-फल करें | स०॥८॥ ॐ ह्रीं त्रयोदश विघसम्यक्चारित्राय मोक्षफलप्राप्तये फल० ॥ ८ ॥ जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु | स०॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अध्यं ॥ ९ ॥ जयमाला दोहा । आप आप थिर नियत नय, तप संयम व्योहार | स्वपर दया दोनों लिये, तेरहविध दुख-हार ॥ १० ॥ चौपाई मिश्रित गीता छन्द । सम्यकचारित रतन सम्भालो, पंच पाप तजिके व्रत पालौ । पंचसमिति त्रय गुपति गहीजै, नर-भव सफल करहु तन छीजै ॥ छीजै सदा तन को जतन यह, एक संयम पालिये । बहु रुल्यो नरक - निगोद-माहीं, कपाय विषयनि टालिये || शुभ-करम-जोग सुघाट आयो, पार हो दिन जात है । 'द्यानत' धरमकी नाव बैठो, शिवपुरी कुशलात है ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय महार्घ निर्वपामीति स्वाहा। समुच्चय जयमाला दोहा सम्यकदरशन-ज्ञान-व्रत, इन बिन मुकति न होय । अन्ध पंगु अरु आलसी. जुदे जलें दव-लोय ॥ १ ॥ ६
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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