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________________ जैन पूजा पाठ समह अछत अनूप निहार, दारिद नाशै सुख भरे ॥ सम्य ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय अक्षत निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ पुहुप सुवास उदार, खेद हरे मन शुचि करे ॥ सम्य ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ नेवज विविध प्रकार, क्षुधा हरै थिरता करें ॥ सम्य ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ दीप- ज्योति तम हार, घट पट परकाशे महा ॥ सम्य ॐ ही अष्टांगसम्यग्दर्शनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ धूप धान- सुखकार, रोग विधन जड़ता हरेरै ॥ सम्य० ॐ ही अष्टांगमम्यग्दर्शनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ श्रीफल आदि विधार, निहचै सुर-शिव-फल करें ॥ सम्य ७७ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फल-फूल चरु ॥ सम्यक ॐ ही अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥ जयमाला दोहा । आप आप निचे लखै तत्व-प्रीति व्योहार | -रहित दोष पच्चीस हैं, सहित अष्ट गुनसार ॥ १ ॥ चौपाई मिश्रित गीता छन्द । | सम्यकदरशन - रतन गहीजै । जिन बच में सन्देह न कीजै । इह भव विभव चाह दुखदानी । पर-भव भोग चहै मत प्रानी ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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