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________________ न पूजा पाठ संग्रह ૬ नेवज विविध निहार, उत्तम पट-रस- संयुगत ॥ भव० ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिगण धमाय नैवय निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ वाति कपूर सुधार, दीपक जोति-सुहावनी ॥ भव० ॐ ही उत्तमक्षमा दिशलक्षण धर्माय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ अगर धूप विस्तार, फैले सर्व सुगन्धता ॥ भव० ॐ ही उत्तमक्षमा दिवनलक्षण धर्माय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ फलकी जाति अपार, प्राण नयन मनमोहने ॥ भव० ॐ ही उत्तमक्षमा दशलक्षण धर्माय फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ आठों दरव संवार, 'द्यानत' अधिक उछाहसों ॥ भव० ही उनमक्षम दिदर लक्षण धर्नाय अपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥ अंग पूजा सोरठा । वीडें दुष्ट अनेक, बांध मार बहुविधि करें । धरिये छिमा विवेक, कोप न कीजें पीतमा ॥१॥ चौपाई मिश्रित गीता छन्द । उत्तम छिमा गहो रे भाई, इह भव जस, पर-भव सुखदाई । गाली सुनि मन बंद न आनो, कहि है अयानो वस्तु छीन, वर निकारै तन विदारे, गुनको औगुन बांध मार वैर जोन कहै अयानो ॥ बहुविधि करै । तहां धरै ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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