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________________ चन पूजा पाठ सह - जयमाला। ज्ञानोपयोगविमलं विशदात्मरूपं । सूक्ष्मस्वभावपरमं यदनंतवीर्य । कर्मीषकक्षदहनं मुखशस्यवीजं । वन्दे सदा निरुपमं वरसिद्धचक्रम् ॥१०॥ छमाष्टर विनिर्मुकं मोहालक्ष्मी-निकेतनम् । ___ सम्यस्त्यादि-गुणोपेत सिसबक नमाम्यहम् ॥ ही निशनकाधिपतये मिलपरमेष्टिने महापं निपंपामोति स्वाहा । त्रैलोक्येश्वर-वन्दनीय-चरणाः प्रापुः श्रियं शाश्वती यानाराध्य निरुद्ध-चण्ड-मनसः संतोऽपि तीर्थकराः। मत्सम्यक्त्व-वियोध-वीर्य-विशदाऽज्यावाधताय गणयुक्तां स्तानिह तोप्टवीमि सतत सिद्धान्धिशुद्धोदयान।। पुष्पांजलि सिपेन। विराग मनातन शांतनिरंश निरामय निर्भय निर्मल हंस । सुधाम वियोध-निधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥१॥ विद्रित-समृति-भाव निरंग, समामृत पूरित देव विसंग। अवध कपाय-विहीन विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुमिद्धसमूह ॥२॥ निवारित दुष्कृत कर्म विपाश, सदामल-केवल-केलि-निवास । भवोदधिपारग शांत विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह ॥३॥ अनन्तसुखामृतसागर धीर, कलंकरजोमलभूरिसमीर । विखंडितकाम विराम विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥४॥ विकार विवर्जित तर्जित शोक, विवोध सुनेत्रविलोकित लोक । विहार विराव विरग विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥२॥ रजोमलवंदविमुक्त विगात्र, निरन्तर नित्य सुखामृतपात्र । मुदर्शनराजित नाथ विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥६॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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