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________________ Armer वरधूप सु दाविधि ल्याय, दश विधि गन्ध धरै। वसु कम लावत जाय, मानो नत्य करें। इक सिद्ध में सिद्ध अनन्त, सता पब पावै। यह अवगाहन गुरा सन्त, सिस्न के गावै ॥ ७ ॥ 21 hat arrairy farmik aron ले फल उत्कृष्ट हान, पिद्धन को पूजौ । लहि मोक्ष परम गुरा धाम, प्रभुसम नहिं दूजों ।। यह गुण वाधाकरि होन, बाधा नाश भई। सुख अव्यावाध चीन, शिव सुन्दरी सु लई॥८॥ rrir m an fruit Farmins जल फल मार कश्चन थाल, परचन कर जोरी। प्रभु सुनियो दीनदयाल, विनती है मोगे॥ कामादिक दुष्ट मान. इनको दूर करो। तुम सिद्धसदा सुवदान, ५व भव दुःख हरो॥६॥ PR-1- Man Entय मति स्यारा॥ जयमालदार नमो सिद्ध परमात्मा, अन्दुत परम रसाल । तिन गुण महिमा अगम है, सरस रची जयमाल । परि छन्। जय जय श्री सिद्धन का प्रणाम, जय गिव मुग्प सागर के सुधान । जय अलि बलि जात सुरेग जान, जय पूजत तन मन हर्प ठान ।।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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